जल संकट की आहट:जलसरंक्षण आवश्यकता
अभी हाल में एक अखबार में राजस्थान का एक फोटो था। जिसमें कुछ स्त्रियां एक गड्ढे से पानी निकालकर भर रहीं हैं।वह चित्र परिस्थिति की भयावहता से आगाह कर रहा था।
पानी के लिए जो दारूण परिस्थिति आनेवाली हैं,उससे हम आगाह तो हैं। परंतु उसके लिए जो जागरूकता व सजगता होनी चाहिये,उसका अभाव हैं। प्रतिवर्ष गर्मियों के दिनों में हम पानी बचाव के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते हैं।मगर जैसे ही जुलाई -अगस्त में बारिश होती हैं,हम दो माह पूर्व की अपनी प्रतिबद्धता को खूंटी पर टांग देते हैं।
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर की स्थिति हमारे यहां के शहरों में भी आनेवाली हैं। जीरो डे यानी नलों से पानी आना बंद। हमारे यहां जनसंख्या तो बढ़ती हैं,पर पानी के स्रोत की क्षमता बढ़ाने के प्रयास नहीं किये जाते। परिणामत: बारिश का पानी बह जाता हैं। बारिश से पहले बांधों की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिये।
अभी हमें पानी सुगमता पूर्वक उपलब्ध हो रहा हैं। किसी भी चीज का अभाव,उसकी महत्ता समझाता हैं। क्या हम इतने अंजान हैं कि पानी की कमी होने के बाद ही जागेंगे? केपटाउन जैसी जीरो डे की स्थिति का सामना भारत के कुछ बड़े शहरों को करना पड़ सकता हैं। जिसमें प्रति व्यक्ति उपयोग के लिए पानी की मात्रा निर्धारित कर दी जायेगी। लगभग 75% घरों में आरओ का प्रयोग किया जाता हैं।हम सभी जानते हैं कि आरओ में बमुश्किल 30% से 40%पानी उपयोगी होता हैं।शेष पानी सिंक में बह जाता हैं। शेष 60%पानी का प्रयोग अन्यत्र कर पानी के दुरूपयोग को टाल सकते हैं। कल्पना करें कि प्रत्येक घर से इस पानी का उपयोग किया जाये,तो पानी का बचाव होगा। दुर्भाग्यवश पानी का कोई विकल्प नहीं हैं। और हम इसे कृत्रिम रूप से बना भी नहीं सकते। इसका एक ही हल हैं कि हम पानी को बचाये। भू जल स्तर का लेवल बढ़ाये। शहरीकरण ने भूमिगत जलस्तर को चिंताजनक स्तर पर पहुंचा दिया हैं। सभी तरफ सीमेंट कांक्रीट की वजह से बारिश का पानी नालियों, नदी और फिर समुद्र में बह जाता हैं। केंद्र सरकार की 2014की रिपोर्ट के अनुसार भारत के 32 बडे शहरों में से 22शहरों में पानी की उपलब्धता से गंभीर रूप से जूझ रहे हैं।कई शहरों में तो सप्लाई के दौरान ही फूटी पाइपलाइन के कारण 30% पानी बह जाता हैं। जब बारिश का आधा पानी नालियों में बह जाता हैं,आधे बचा पानी का 30% सप्लाई में बह जाता हैं। इससे हमें पता चलता हैं कि हम पानी के प्रति कितने सेंसेटिव हैं।
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ बेंगलुरु ही नहीं देश के ऐसे 21 शहर हैं जो 2050 तक 'डे जीरो' की कगार पर होंगे. 'डे जीरो' का मतलब नलों की टोटियां बंद। पानी का राशनिंग। द नेचर कंजरवेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक विश्व के कई शहर भयानक पानी की किल्लत का सामना करेंगे। कई शहरों में भू जल का रिचार्ज सिस्टम खत्म हो चुका हैं। मैदानी इलाका अत्यधिक कम हो जाने के कारण भू जल स्तर रिचार्ज न होने के कारण चिंताजनक स्तर पर हैं।जिस गति से हम भूगर्भीय जल स्तर का दोहन करने में लगे हैं,उसका 50%
भी भू जल स्तर के संवर्धन में योगदान करें,तो इस समस्या की भयावहता कुछ अंश में कम हो सकती हैं। प्रशासनिक व व्यक्तिगत स्तर पर यह प्रयास होने चाहिये। शहरों में जल सप्लाई की पाईप लाईन सर्वोच्च प्राथमिकता पर सुधारी जानी चाहिये। जिससे पानी का अपव्यय रोका जा सके। शहरों में जो बांध हैं,
उनकी क्षमता बढ़ाई जानी चाहिये। जिसमें ज्यादा पानी संग्रहित किया जा सके। भू जलस्तर बढ़ाने के लिए,वाटर हार्वेस्टिंग जैसी पद्धति को सुगम और सुलभ बनाना चाहिये। प्रशासन की ओर से नागरिकों को प्रोत्साहन स्वरूप मदद उपलब्ध करानी चाहिये। अब समय आ गया है कि जल बचाव अभियान नारों तक,फोटो छपाने तक सीमित न रखते हुए,
धरातल पर करें। अन्यथा अगले पचास सालों में हमें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।हमारी अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।