सच्चा रचनाकार गमले का फूल नहीं होता – डॉ. रामदरश मिश्र
मुंबई। सच्चा रचनाकार किसी वाद-विवाद में स्वयं को बाॅंटने और सीमित करने के बजाय विराट तथा विस्तृत फलक को आधार बनाकर रचनाकर्म में सन्नद्ध होता है। वह आयातित विचारों के पीछे नहीं बल्कि अपने जीवन तथा परिवेश के अनुभवों को साक्ष्य मानकर चलता है तथा जीवन मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ही उसे गौरवशाली बनाती है। ये महत्वपूर्ण विचार हिंदी साहित्य के वरिष्ठ रचनाकार डॉ. रामदरश मिश्र ने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी और के. एम. अग्रवाल कॉलेज, कल्याण के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में व्यक्त किये।
यह राष्ट्रीय संगोष्ठी हाल ही में हिंदी के वरिष्ठ रचनाकार डॉ. रामदरश मिश्र के सौवें जन्म दिन की पूर्व संध्या पर कल्याण के के. एम. कॉलेज में आयोजित की गई। दीप प्रज्ज्वलन और महाराष्ट्र राज्य गीत के साथ आरम्भ हुई इस संगोष्ठी में शतवर्षीय श्री मिश्र ने डिजिटल माध्यम से अपना ओजस्वी वक्तव्य दिया। आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने अपनी प्रसिद्ध ग़ज़ल – ‘जहाॅं आप पहुॅंचे छलांगें लगाकर, वहाॅं मैं भी पहुॅंचा मगर धीरे- धीरे..!’ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। बीज वक्ता के रूप में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने रचनाकार के बारे में अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि श्री मिश्र की रचनाओं में बार-बार जल, पानी और धरती जैसे शब्द आते हैं। उसका कारण यह है कि दो नदियों के बीच बसे उनके गाॅंव में कभी बाढ़ से फसलें नष्ट हो जाती थीं, तो कभी सूखा पड़ने पर त्राहि-त्राहि मचती थी। इसलिए उनके परिवेश का पानी ही उनकी ऑंखों का पानी बनकर उनकी रचनाओं में उतरता है। उन्होंने कहा कि श्री मिश्र की रचनाऍं उनके जीवन के साथ-साथ भारतीय संस्कृति एवं मानवीय मूल्यों की पक्षधर हैं। डॉ. दुबे ने कहा कि अकादमी वरिष्ठ रचनाकारों के जीवन और साहित्य केंद्रित समारोह आयोजित कर उनका गौरव करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रही है और भविष्य में भी यह गरिमापूर्ण सिलसिला निरंतर जारी रहेगा। मुख्य अतिथि के रूप में पुणे विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर डॉ. शशि कला राय ने कथा साहित्य का उल्लेख करते हुए कहा कि डॉ. रामदरश मिश्र जीवन के सरोकार के रचनाकार हैं। विशेष अतिथि के रूप में डॉ. सतीश पांडे ने डॉ. रामदरश मिश्र को सहज रचनाकार के रूप में उल्लिखित किया। के. एम. अग्रवाल कॉलेज प्रबंधन समिति की ओर से श्री ओमप्रकाश पांडे और प्राचार्या डॉ अनिता मन्ना ने उपस्थित विद्वानों का स्वागत किया। इस अवसर पर उपस्थित अकादमी के सदस्य आनंद सिंह ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। सत्र संयोजक की भूमिका डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ने निभाई। अग्रवाल महाविद्यालय कीउप प्राचार्य डॉ. अनघा राणे एवं डॉ. संतोष कुलकर्णी ने उद्घाटन सत्र में अन्य प्राध्यापकों के साथ सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित की।उल्लेखनीय है कि उम्र के सौ सक्रिय वर्ष पूरे करने के बाद भी डॉ.मिश्र रचनाकर्म में पूरी तरह सक्रिय हैं। प्रथम चर्चा सत्र के अध्यक्ष के रूप में सोमैया महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. सतीश पाण्डेय उपस्थित थे। प्रपत्र वाचक के रूप में डॉ. मिथिलेश शर्मा, डॉ. पल्लवी प्रकाश, डॉ. ऋषिकेश मिश्र, डॉ. महात्मा पाण्डेय, डॉ. उषा आलोक दुबे, डॉ. भगवती प्रसाद उपाध्याय और नाशिक से डॉ. गीता यादव उपस्थित रहीं। सत्र संयोजन डॉ. अनघा राणे एवमआभार ज्ञापन डॉ. अनुराधा शुक्ला ने किया।द्वितीय चर्चा सत्र में अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने की तथा प्रपत्र वाचकों में डॉ. संतोष मोटवानी, डॉ. श्याम सुंदर पाण्डेय, डॉ. दिनेश पाठक, डॉ. सत्यवती चौबे, डॉ. तेज बहादुर सिंह एवं वर्धा से अमित चौहान उपस्थित रहे। सत्र संयोजन डॉ महेश भिवंडीकर एवंआभार ज्ञापन डॉ. रीना सिंह ने किया ।समापन सत्र के अध्यक्ष के रूप में मुंबई विद्यापीठ के मानविकी संकाय अधिष्ठाता प्रोफ़ेसर अनिल सिंह उपस्थित थे। सत्र संयोजन डॉ. राज बहादुर सिंह ने किया। अंत में आभार ज्ञापन डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ने किया। इस संगोष्ठी को सफल बनाने में उदय सिंह, सुहास भगत, विजय वास्तवा, डॉ. दहिवले, डॉ. जाधव, डॉ. अनघा राणे और डॉ. संतोष कुलकर्णी के साथ सभी शिक्षकों, शिक्षकेतर कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों ने सक्रिय सहयोग दिया।